Sunday, January 16, 2011

lafenge parinde..........

यौवन आते ही उन्मुक्त हो उठे
उन्माद में भयमुक्त हो उठे
जमीं से कहा उगे थे जो
आसमा से उँचे हो उठे

पहली आजादी के अहसास से
खुलेपन की सास से
चलना कहा सिखा था
गिर पड़े उड़ने के कयास से

हवाओं से बाते करते थे
रफ़्तारो से मुलाकातें करते थे
कब मौत ने जिंदगी को पछाड़ दिया
हम तो आपसी हौड़ लगाया करते थे

फ़िक्र को धुआ करने मे
सूखे कंठ में मिठास भरने मे
कश लगाया पहली बार
हर पहलु का आभास करने मे

न जाना इस दलदल को
न माना इस हलाहल को
धसते गये इस मीठे जहर मे
लील गया धुआ जीवन को

उलझन तो महज बहाना था
रंगीन पानी में नहाना था
जाम पर जाम लेते थे
जीवन ही हमे भुलाना था

बेखुदी में खुदी खो बैठे
तैरने मे जमीं खो बैठे
बहकावा तो पल भर का था
पल भर मे कल खो बैठे

प्यार के बुखार मे
अपरिप्क्व इश्क की हार मे
प्यार का मतलब जाना नहीं
डुब गये फ़ंस बीच मंझधार में

थे न हम कभी खुदा के बंदे
हर नए मोड़ पर गुमनाम कांरिदे
खुला आसमां देख भटक गये
अब परकटे हम लंफ़गे परिंदे

6 comments:

Devendra gore said...

its truely a youngster based poem . . . . .yar specialy 3stanza . . . .good work . . .

Mayank Sharma said...

thx devendra bhai :)

Anonymous said...

really awesome...

Sanjeev Soni said...

v nice...

Mayank Sharma said...

thx anonymour and sanjeev sir :)

Anonymous said...

kota experience vala portion is very very good